रविवार, 20 दिसंबर 2020

गीता के द्वारा भक्त तथा भगवान का संबंध

             एक बहुत ही प्यारा रिश्ता है भक्त और भगवान का भक्त भगवान में लीन होता है और भगवान भक्त में तभी तो भगवान से पहले भक्तों का नाम जुड़ जाता है भक्त और भगवान।

                      भक्त और भगवान के मध्य गीता के अनुसार पांच प्रकार का संबंध हो सकता है -

1 - कोई निष्क्रिय अवस्था में भक्त हो सकता है।

2 -  कोई सक्रिय अवस्था में भक्त हो सकता है।

3 -  कोई सखा रूप में भक्त हो सकता है।

4 -  कोई माता या पिता के रूप में भक्त हो सकता है।

5 - कोई दंपत्ति - प्रेमी के रूप में भक्त हो सकता है।

                      लाखों-करोड़ों जीवो में से प्रत्येक जीव का भगवान के साथ नित्य विशिष्ट संबंध है जिस प्रकार अर्जुन का कृष्ण से सखा रूप में संबंध था ,तो राधा का प्रेमिका रूप में संबंध था ,यशोदा और नंद का माता पिता के रूप में संबंध था ,गोप गोपियों का सखा, भक्त सेवक आदि रूपों में संबंध था यह स्वरूप कहलाता है भक्ति योग की प्रक्रिया द्वारा यह स्वरूप जागृत किया जाता है।

                 भगवान से भगवत गीता सुनने के बाद अर्जुन ने कृष्ण को परम ब्रम्ह स्वीकार कर लिया क्योंकि अर्जुन तो कृष्ण को सदैव से ही मित्र रूप में देखते थे प्रत्येक जीव ब्रह्म है लेकिन परम पुरुषोत्तम भगवान परम ब्रह्म है परम धाम का अर्थ है कि वे सबों के परम आश्रय हैं या धाम है पवित्रम का अर्थ है कि वे शुद्ध है भौतिक कल्मष से बेदाग हैं। पुरुषम का अर्थ है कि वह परम भोक्ता है। शाश्वतम् अर्थात आदि सनातन। दिव्यम अर्थात दिव्य ।आदि देवम् भगवान । अजम् अजन्मा और विभुम अर्थात महानतम है।

                अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है कि वे जो कुछ भी कहते हैं उसे वह पूर्ण सत्य मानता है ।भगवान के व्यक्तित्व को समझ पाना बहुत कठिन है मानव मात्र भक्त बने बिना भगवान श्री कृष्ण को कैसे समझ सकता है ?

      भगवद गीता क्या है ? - भगवत गीता का प्रयोजन मनुष्य को भौतिक संसार के अज्ञान से उबार ना है प्रत्येक व्यक्ति अनेक प्रकार की कठिनाइयों में फंसा रहता है जिस प्रकार अर्जुन भी कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए कठिनाई में था अर्जुन ने श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण कर ली फलस्वरूप इस भगवद गीता का प्रवचन हुआ भगवद गीता से हमें अवश्य सीखना चाहिए कि ईश्वर क्या है , जीव क्या है ,प्रकृति क्या है  दृश्य जगत क्या है ,यह काल द्वारा किस प्रकार नियंत्रित किया जाता है और जीवो के कार्यकलाप क्या है ?

           भगवदगीता के इन 5 मूलभूत विषयों में से इसकी स्थापना की गई है ।भगवान भौतिक प्रकृति के समस्त कार्यों के ऊपर नियंत्रण रखते हैं ।भौतिक प्रकृति भगवान के निर्देशन में कार्य करती है ।परमेश्वर वह चालक है जिस के निर्देशन में सब कार्य हो रहा है भगवान ने जीवो को अपने अंश रूप में स्वीकार किया है भौतिक प्राकृतिक तीन गुणों से निर्मित है  - (1) सतोगुण  (2) रजोगुण  (3) तमोगुण  । इन गुणों के ऊपर नित्य काल है और इन प्रकृति के गुणों तथा नित्य काल के नियंत्रण व सहयोग से अन्य कार्य कलाप होते हैं जो कर्म कहलाते हैं हम सभी अपने कार्यकलाप के फल स्वरुप सुख या दुख भोग रहे हैं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हम अपने कर्म के फल का सुख भोगते हैं या उसका कष्ट उठाते हैं यह कर्म कहलाता है इन पांचों में से ईश्वर, जीव,प्रकृति तथा काल शाश्वत है। प्रकृति की अभिव्यक्ति अस्थाई हो सकती है परंतु यह मिथ्या नहीं है ।यह भौतिक प्रकृति (अपरा प्रकृति )परमेश्वर की भिन्नाशक्ति है। इस तरह भगवान ,जीव ,प्रकृति ,तथा काल यह सब परस्पर संबंधित है और सभी शाश्वत हैं लेकिन जीव केवल अपने शरीर के प्रति सचेत रहता है जबकि भगवान समस्त शरीरों के प्रति सचेत रहते हैं ।कर्म शाश्वत नहीं है पांचो (ईश्वर जीव प्रकृति काल तथा कर्म) में से चार शाश्वत हैं कर्म शाश्वत नहीं है ।

             भगवद् गीता शिक्षा देती है कि हमें इस कलुषित चेतना को शुद्ध करना है। शुद्ध चेतना होने पर हमारे सारे कर्म ईश्वर की इच्छा अनुसार होंगे और इससे हम सुखी हो सकेंगे अपने कर्मों को शुद्ध करना चाहिए और शुद्ध कर्म भक्ति कहलाते हैं। भक्ति में कर्म सामान्य कर्म प्रतीत होते हैं किंतु वह कलुषित नहीं होते ।

                          जय श्री कृष्ण

                                                         प्रणाम

                                                 अन्नपूर्णा शर्मा




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

If you want to know more about Indian Culture. Please let me know.

श्रीमद भगवद गीता अध्याय 2 के श्लोक 16 और 17

  श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 के श्लोक 16 और 17  --- इन श्लोकों में तत्वदर्शीयों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि असत् (भौतिक शरीर) का तो कोई चीर ...